वीरगाथाकाल
पहले कहा जा चुका है कि प्राकृत की रुढियों से बहुत कुछ मुक्त भाषा के जो पुराने काब्य -बीसलदेव्ररासो ,पृथ्वीराजरासो -आजकल मिलते हैं वे संदिग्ध हैं |इसी संदिग्ध सामग्री को लेकर थोड़ा -बहुत विचार हो सकता है , उसी पर हमें संतोष करना पड़ता है |
इतना अनुमान किया जा सकता है कि प्राकृत पढ़े पंडित ही उस समय कविता नहीं करते थे |
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